
लोग और जीवनशैली
भारत की मानवजातीयता
दिनांक 1 मार्च 2001 की जनगणना के अनुसार 1,027 मिलियन से अधिक जनसंख्या वाला भारत, विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों के जातीय गुणों के बेजोड़ आत्मसातकरण को दर्शाता व चित्रित करता एक रंगीन केनवास है। वस्तुत: देश की यह जातीयता वह कारक है जो इसे अन्य राष्ट्रों से अलग बनाती है। इसके अलावा, सांस्कृतिक अतिरंजिका के आधिक्य, धर्मों इत्यादि, को ध्यान में रखते हुए भारत की राष्ट्रीयता की व्यापकता, एक आधार वाक्य है जिसके कारण देश को मात्र एक राष्ट्र-राज्य के रूप में देखने के बजाए बड़ी विश्व सभ्यता की आधार शिला के रूप में देखा जाता है।
प्राचीन समय से ही, भारत की आध्यात्मिक भूमि ने संस्कृति धर्म, जाति भाषा इत्यादि के विभिन्न वर्ण प्रदर्शित किए हैं। जाति, संस्कृति, धर्म इत्यादि की यह विभिन्नता अलग-अलग उन जातीय वर्गों, के अस्तित्व की गवाही देती है, जो यद्यपि एक राष्ट्र के पवित्र गृह में रहते हैं, परन्तु विभिन्न सामाजिक रिवाजों और अभिलक्षणों को मानते हैं। भारत की क्षेत्रीय सीमाएं, इन जातीय वर्गों में उनकी अपनी सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान के आधार पर भेद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। भारत में जो धर्म विद्यमान हैं वे हैं हिन्दू धर्म, ईसाई धर्म, इस्लाम, सिक्ख, धर्म, बुद्ध धर्म, और जैन धर्म। नागरिकों को, जिस भी धर्म को वे चाहते हैं, अपनाने की स्वतंत्रता है। देश में 35 अलग-अलग राज्यों व केंद्रशासित क्षेत्रों का संचालन करते समय, विभिन्न राज्यों द्वारा, संस्कृतियों के प्रदर्शन से विभिन्न भागों में क्षेत्रीयता की भावना उत्पन्न हुई है। जो हालांकि राष्ट्रीय सांस्कृतिक पहचान दर्शाने के लिए अंतत: एक सामान्य बंधन से मिल जुल जाती है। भारतीय संविधान ने, देश में प्रचलित विभिन्न 22 भाषाओं को मान्यता प्रदान की है। जिनमें से हिंदी राजभाषा है तथा भारत के अधिकांश नगरों व शहरों में बोली जाती है। इन 22 भाषाओं के अलावा, सैकड़ों बोलियां भी हैं जो देश की बहुभाषी प्रकृति में योगदान करती हैं।
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